कुंडलिनी मंत्र साधना

कुण्डलिनी की सर्वत्र सर्व विश्ववाव्यापी एक ऐसी शक्ति है जिस के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा है। यह सर्वशक्तिमान परम शिव जी की अधिष्ठात्री शक्ति है।
कुंडलिनी पार्वती रूपी ऐसी शक्ति है, जब तक सुप्त रहती है तो जीवन निस्तेज ही बना रहता है।
जैसे ही वे जाग्रत होती है, शरीर मे स्थित मुख्य 7 चक्रो को जाग्रत कर के,पुरे जीवन की कायाकल्प करने लगती है।

कुंडलिनी मुलाधार चक्र मे स्थित शिवलिंग पर साढ़े तीन फेरे लगाये सुप्त अवस्था मे लिपटी रहती है, शिवलिंग से ही वे शक्ति अर्जित कर के मानव जीवन को संचालित करती है।

यह मानव जीवन का दुर्लभतम वरदान है जिसको साध लेने से जन्म-जन्मान्तर के पाप भाव-बंधन टूटने लगते हैं।
वे साधक को इस ब्रमांड के उच्चतम शिखर पर ले जाती है।

समस्त विश्वव्यापी संसार में जो अनंत-कोटि ब्रह्माण्ड हैं, उनकी यात्रा, इसी मानव शरीर में कराती हुई, अंत में जब यह परम शिवा के वाम भाग में विराजती है तो मनुष्य की चेतना अपने पूर्णतम विकास को प्राप्त करती है अर्थात अपने आत्म स्वरुप में ही अवस्थित हो जाती हैं |

  कुण्डलिनी तंत्र को समझने से पहले नाड़ी चक्र के विज्ञान को समझना अनिवार्य है | मानव-शरीर में नाड़ियों की संख्या बहत्तर हज़ार बतायी गयी है | ये नाड़ियाँ पेड़ के पत्तों की अतिसूक्ष्म शिराओं की भांति शरीर में रहती हैं | ये नाड़ियाँ, मनुष्य शरीर में, लिंग से ऊपर और नाभि के नीचे के स्थान (जिसे मूलाधार भी कहते हैं) से निकल कर पूरे शरीर में व्याप्त हैं |

इन बहत्तर हज़ार नाड़ियों में भी बहत्तर नाड़ियाँ प्रमुख हैं | ये सभी नाड़ियाँ, चक्र के समान शरीर में स्थित होकर शरीर तथा शरीर में स्थित पाँचों प्रकार की वायु

 (प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान) 

का आधार बनी हुई हैं | इन बहत्तर नाड़ियों में भी दस नाड़ियाँ प्रधान हैं जिनके नाम
-इड़ा, पिन्गला, सुषुम्ना, गान्धारी, हस्तिजिव्हा, पूषा, यशस्विनी, अलम्बुषा, कुहू और शन्खिनी हैं।

इन दस नाड़ियों में भी प्रथम तीन नाड़ियाँ इड़ा, पिन्गला और सुषुम्ना विशेष महत्व की हैं जो प्राणवायु के मार्ग में स्थित हैं | शरीर के मेरुदंड के वाम भाग में या बाएं नासारंध्र (नाक) में इड़ा और दायीं तरफ (दाहिनी नाक में) पिन्गला नाड़ी है | मेरुदंड के बीचोबीच सुषुम्ना नाड़ी है।

 इन तीनों ही नाड़ियों में प्राणवायु बहती है, इसके अतिरिक्त बायीं आँख में गांधारी, दाहिनी आँख में हस्तिजिव्हा, दायें कान में पूषा, बाएं कान में यशस्विनी, मुख में अलम्बुषा, लिंग में कुहू, और गुदा में शन्खिनी स्थित है।
 शरीर के दस द्वारों पर ये दस नाड़ियाँ स्थित हैं | इनमे इड़ा नाड़ी में चन्द्र, पिन्गला नाड़ी में सूर्य तथा सुषुम्ना में अग्नि देवता स्थित हैं।

जो लोग इड़ा (चन्द्र), और पिंगला (सूर्य) नाड़ी से प्राणवायु का अभ्यास, स्वरोदय शास्त्र के अनुसार, निरंतर करते हैं उनकी दृष्टि त्रैकालिक होने लगती है यानी उन्हें भविष्य का भान होने लगता है | इन नाड़ियों के स्वर से शुभ-अशुभ, किसी कार्य के सिद्ध होने या बेकार जाने का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है | स्वरोदय-शास्त्र में इनकी विस्तार से चर्चा है।

शुभ कर्म में चन्द्र या इड़ा नाड़ी का चलना तथा रौद्र कर्म में सूर्य या पिन्गला नाड़ी का चलना अच्छा माना जाता है | इड़ा नाड़ी चलने का अर्थ है बायीं नाक से श्वाँस का चलना और पिंगला नाड़ी चलने का अर्थ है दाहिनी नाक से श्वाँस का चलना | किस समय कौन सी नाड़ी चल रही है इसका अनुभव आप अपनी नासिका छिद्रों के पास अपनी अँगुलियों को ले जाकर कर सकते हैं |

इन नाड़ियों के चलने का क्रम इस प्रकार से है- 

शुक्ल पक्ष में पहले तीन दिन तक चन्द्र नाड़ी चलती है | इसके बाद तीन दिन तक सूर्य नाड़ी चलती है | फिर उसके बाद तीन दिन तक चन्द्र नाड़ी और उसके बाद तीन दिन सूर्य नाड़ी चलती है | इसी क्रम से शुक्लपक्ष में नाड़ी सञ्चालन होता है | इसी प्रकार से कृष्णपक्ष में पहले तीन दिन दाहिनी नाड़ी यानी सूर्य-स्वर का उदय होता है उसके बाद चन्द्र नाड़ी का | इसी प्रकार से प्रत्येक दिन इन नाड़ियों का क्रमबद्ध उदय एवं अस्त होता है।
शक्ति है : ऊर्जा शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियां होती हैं जिनसे ऊर्जा प्रवाहित होती है, और एक सौ चौदह महत्वपूर्ण मिलन बिंदु होते हैं, जहां काफी संख्या में नाड़ियां मिलती हैं और फिर बंट जाती हैं।
इन समस्त नाड़ियों का सञ्चालन करने वाली शक्ति ही कुण्डलिनी, और कुंडलिनी जाग्रत हो कर सुषमाना नाड़ी से ही उप्पर उठती है।
और मुख्य है गंगा देवी जो की कुंडलिनी के लिए रास्ता तो बनाती ही है तथा कुंडलिनी जागरण मै मुख्य सहायता करती है।



क्या रहस्य है कुण्डलिनी शक्ति का?-


1-कुण्डलिनी शक्ति मूलाधार चक्र के नीचे, सर्प की भांति, साढ़े तीन कुंडली मार कर सोई हुई है, यह सोई हुई कुण्डलिनी शक्ति जब पहली बार जागती है तो शरीर में तीर्व शक्ति का अहसास होने लगता है यद्यपि प्रत्येक साधक के अपने स्वतंत्र निजी अनुभव हो सकते हैं लेकिन शरीर उस समय विचित्र दौर से गुजरता है- एक ऐसा अनुभव जैसा पहले कभी ना हुआ हो।
निरंतर साधना एवं अभ्यास से जब कुण्डलिनी जागती है तो वह ऊपर की तरफ उठती है। उस समय सुषुम्ना नाड़ी, प्राणवायु के लिए राजपथ बन जाती है | जैसे एक राजा, राजमार्ग से, अपने पूरे ऐश्वर्य के साथ निकलता है, वैसे ही प्राणवायु, सुषुम्ना नाड़ी में सुखपूर्वक बहती है।

अगर साधक को मुलाधार चक्र के अंदर कुंडलिनी दिखाई देने लगे तो वे उच्चतम कोटि का साधक ही होता है।


उस समय चित्त यानि मन निरालम्ब हो जाता है और योगी को किसी भी प्रकार का भय नहीं रह जाता।

 तंत्रशास्त्रों में सुषुम्ना नाड़ी की बहुत महिमा बखान की गयी है।
 इसे शून्य पदवी, ब्रह्मरन्ध्र, महापथ, शाम्भवी, मध्यमार्ग आदि नाम दिए गए हैं। मंत्र योग, यज्ञ, हवन, प्राणायाम, ध्यान और साधना के माध्यम से कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है और यह शक्ति जागृत होकर सभी चक्रों का भेदन करती है अर्थात चक्रों को जगाती है, जिससे मन स्थिर होता और मन में आध्यात्मिक विचार उत्पन्न होने लगते हैं।

मंत्र शक्ति : 
कुण्डलिनी जागरण के लिए मुलाधार मै स्थित अन्य देवी देवताओ का जागरण तथा उन की सहायता ली जाती है।
मुलाधार के मुख्य देवी देवता :
गणेश
शिव 
इन्दर देव 
चामुंडा देवी 
डाकिनी 
ब्रह्मा देव 




जागने के बाद, जब कुण्डलिनी शक्ति ऊपर की तरफ उठती है तो सारे चक्र खिल जाते हैं, ब्रह्म ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि, और रूद्र ग्रंथि खुल जाती हैं तथा शरीर में स्थित षट्चक्र पूर्ण विकसित होते हुए खुल जाते हैं |

कुण्डलिनी शक्ति का जागरण, ब्रह्मरंध्र में स्थित छह चक्रों का भेदन करके किया जा सकता है। ब्रह्मरंध्र /सहस्रार चक्र मष्तिष्क में पीछे की तरफ़, सबसे ऊपर होता हैं | यहीं पर परात्पर पुरुष, सहस्त्रों पंखुड़ियों वाले कमल पर बैठा है |रंध्र एक संस्कृ‍त शब्द है जिसका मतलब है मार्ग, जैसे कोई छोटा छिद्र या सुरंग। यह शरीर का वह स्थान होता है, जिससे होकर जीवन भ्रूण में प्रवेश करता है।जब बच्चा पैदा होता है तो उसके सिर पर एक नर्म जगह होती है।सिर पर सबसे ऊपर ब्रह्मरंध्र नाम का एक बिंदु होता है।


 अगर आप ब्रह्मरंध्र से शरीर छोड़ सकें, तो यह शरीर छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है, इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जिस मे गंगा देवी की ऊर्जा से इस गति को प्राप्त किया जाता है।
यह ब्रह्मरंध्र आपको तैयार रखना पड़ता है, पूरी चेतनता में शरीर से बाहर चला जाए।

SadhGuruGuleria

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